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मुसाफ़िर कल भी था मुसाफ़िर आज भी हूँ,कल अपनों की तलाश में था आज अपनी तलाश मैं हूँ!

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हज़ारों उलझनें राहों में और कोशिशें बेहिसाब, इसी का नाम है ज़िंदगी चलते रहिए जनाब- गुलज़ार
आज पढ़ने वाला कल का लीडर होगा। -- मार्गरेट फुलर
आज तन्हा हुए तो अहसास हुआ ! कई घण्टे होते है एक दिन में !!
जो मिला उसमें ही खुश रहता हूं मेरी ऊंगलिया मुझे सिखाती है, दुनिया में एकसमान कोई नहीं।
अक्सर लोग आलसी नहीं होते बल्कि उनके लक्ष्य कमजोर होते हैं…
हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहाँ दम था, मेरी किश्ती थी डूबी वहां, जहाँ पानी कम था…
जब ‘दर्द’ और ‘कड़वी’ बोली दोनों मीठी लगने लगे तब समझ लीजिये कि जीना आ गया
आज टुटा एक तारा देखा, बिल्कुल मेरे जैसा था, चाँद को कोई फर्क नहीं पड़ा, बिल्कुल तेरे जैसा था.
जिंदगी में अगर बुरा वक्त नहीं आता तो अपनों में छुपे हुए गैर और गैरों में छुपे हुए अपनों का कभी पता न चलती
ज़रा संभाल कर रखा कीजिए अपने ज़ख्मों को, आज कल लोग मरहम और महरूम में फ़र्क़ नहीं करते