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जब ‘दर्द’ और ‘कड़वी’ बोली दोनों मीठी लगने लगे तब समझ लीजिये कि जीना आ गया

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वह मासूम लगता है लेकिन वह जीना जानता है, गहरे दर्द में हंसना जानता है!
दर्द की दवा न हो, तो दर्द को ही दवा समझ लेना चाहिए…
दर्द, गम, डर जो भी है बस तेरे अंदर हैं, खुद के बनाये पिंजरे से निकल कर देख, तू भी एक सिकंदर हैं!
जब मेहनत करने के बाद भी सपने पुरे नहीं होते तो रास्ते बदलीए सिद्धांत नहीं क्योंकी, पेड़ भी हमेशा पत्ते बदलता है जड़ नहीं
मोहब्बत ने यू शिला दिया है मुझे जो मेरे हक में ना था वो दर्द भी दिया है मुझे
वह व्यक्ति कुछ नहीं पा सकता जिसने उम्मीद खो दी है….
दर्द की दवा न हो तो दर्द को ही दवा समझ
जवाब सुनकर वह भी रोने लगा कहीं ना कहीं मेरे दर्द में खोने लगा
यूँ जमीन पर बैठकर क्यूँ आसमान देखता है पँखों को खोल जमाना सिर्फ उड़ान देखता है
जब परिवार के सदस्य अप्रिय लगने लगे और पराये अपने लगने लगे, तो समझ लीजिए विनाश का समय आरंभ हो गया है।