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दोस्त दिल रखने को करते हैं बहाने क्या किया रोज़ झूटी ख़बर-ए-वस्ल सुना जाते

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मुझे दोस्त कहने वाले ज़रा दोस्ती निभा दे ये मुतालबा है हक़ का कोई इल्तिजा नहीं
आ गया ‘जौहर’ अजब उल्टा ज़माना क्या कहें दोस्त वो करते हैं बातें जो अदू करते
ऐ दोस्त तुझ को रहम न आए तो क्या करूँ दुश्मन भी मेरे हाल पे अब आब-दीदा है
परिवार और दोस्त छिपे हुए ख़ज़ाने हैं, जो तकलीफ या परेशानी में सबसे पहले सामने आते हैं।
दोस्ती ख़्वाब है और ख़्वाब की ता’बीर भी है रिश्ता-ए-इश्क़ भी है याद की ज़ंजीर भी
प्यार हम दोनों ने किया मगर तड़पना सिर्फ मेरे नसीब
बड़ा बनो पर उसके सामने नहीं, जिसने तुम्हें बड़ा किया है
एतबार किया खता नहीं एतबार से बडी खता नहीं
दोस्ती आम है लेकिन ऐ दोस्त दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल
एक बेहतरीन किताब 100 अच्छे दोस्त के बराबर है, लेकिन एक सर्वश्रेष्ठ दोस्त पुस्तकालय के बराबर है। -- एपीजे अब्दुल कलाम