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अरे इतनी नफरत है उसे मुझसे की मैं मर भी जाऊं, तो उसे कोई फर्क नही पड़ेगा

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सहमी हुई थी झोपड़ी बारिश के खौफ से, मेहलो की आरजू थी के बारिश जरा जम के बरसे
अब वो नफरत में बदल गयी है।
खाली जेब लेकर निकलो कभी बाजार में, जनाब वहम दूर हो जाएगा इज्जत कमाने का
बड़ी अजीब होती है ये यादें, कभी हसा देती है, कभी रुला देती है
मुझपर बहुत जिम्मेदारियां थी मेरे घर की, माफ करना मैं तेरे इश्क में मर नहीं सकता
अगर सूरज के तरह जलना है तो रोज उगना पड़ेगा I
धोका ऐसे ही नही मिलता, भला करना पड़ता है लोगो का
जहां में डूबा था मुझे वही किनारा चाहिए, तू फिर आ मेरे पास मुझे तू दोबारा चाहिए
न जाने किस कॉलेज से ली थी मोहब्बत की डिग्री उसने ! जितने भी मुझसे वादे किये थे सब फ़र्ज़ी निकले.
अब बात नफरत की है तो नफरत ही सही।