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उदास करती है मुझे हर रोज़ ये शाम, ऐसा लगता है जैसे कोई भुला रहा है धीरे-धीरे…!!

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जुबान सुधर जाए तो जीवन सुधरने में वक़्त नहीं लगता।
आप चाहें जिस भी वस्तु की इच्छा करो, वह आपको आपके अपेक्षित रूप में नहीं मिलेगी. – हारुकि मुराकामी
दुःख तुमने मुझे नहीं दिया है, मैंने अपने आप को दुःख दिया है.
ये दिन भी क़यामत की तरह गुज़रा है न जाने क्या बात थी हर बात पर रोना आया
अपनी पीठ से निकले खंजरों को जब गिना मैंने, ठीक उतने ही निकले जितनो को गले लगाया था मैंने
आंसू किसी और के दुख को समझता नहीं है, और न ही किसी की खुशी को। - Franz Schubert
सूरज और चांद की ख्वाहिश नहीं मुझे, जहां दिल को सुकून मिले वहीं मेरे खुदा का दर है।
मौन, मैंने समझा है , एक ऐसी चीज़ है जो आप वास्तव में सुन सकते हो।
मेरे ग़म का छोटा सा हिस्सा लेकर तो देखो , मरने की ख्वाहिश न करने लगे तो कहना
उदास कर जाती है मुझे हर रोज ये शाम, ऐसा लगता है जैसे कोई भुला रहा है धीरे धीरे