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जो लोग ठोकर खाकर भी चलते रहते हैं, वही एक दिन मंजिल पाते हैं
क्रोध हमेशा मूर्खता से शुरू होकर पश्चाताप पर समाप्त होता है।
ताश का जोकर, और अपनों की ठोकर, अक्सर वाजी पलट देते है।
इंसान का ‘ज़मीर’ और शतरंज का ‘वज़ीर’ एक जैसा होता है क्योकी अगर दोनो मर गए, तो खेल खत्म
हलके-हलके बढ़ रही है चेहरे की लकिरें; लगता है, नादानी और तजुर्बे का बंटवारा हो रहा है
दुनिया की हर चीज ठोकर लगने से टूट जाती है, एक कामयाबी ही है जो ठोकर लगने के बाद आती है।
गुरुर किस बात का साहब, आज मिट्टी के उपर, तो कल मिट्टी के निचे
खुद पर भरोसा करने का हुनर सीख लो. सहारे कितने भी भरोसेमंद हो, एक दिन साथ छोड़ ही जाते है!
मिलता तो बहुत कुछ है इस ज़िंदगी में, बस हम गिनती उसी की करते है, जो हासिल न हो सका
झूठ इसलिए बिक जाता है, क्योंकि सच खरीदने की हैसियत सबकी नही होती।