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यूँ जमीन पर बैठकर क्यूँ आसमान देखता है पँखों को खोल जमाना सिर्फ उड़ान देखता है
किस्मत सिर्फ मेहनत से बदलती है, बैठ कर सोचते रहने से नहीं!
कामयाब बनो अपने लिए ना सही, पर उन लोगों के लिए जो आपको असफल देखना चाहते हैं!
रुकावटें आती है सफलता की राहों में, ये कौन नहीं जानता फिर भी वह मंज़िल पा ही लेता है, जो हार नहीं मानता।
आत्मसम्मान एक ऐसी सड़क है, जो देर सवेर ही सही, लेकिन आपको आपकी मंजिल तक जरूर पहुंचाती है।
हर पतंग जानती है अंत में कचरे में जाना है लेकिन, उसके पहले हमें आसमान छूकर दिखाना है.
जो लोग ठोकर खाकर भी चलते रहते हैं, वही एक दिन मंजिल पाते हैं
मेहनत का फल और समस्या का हल, देर से ही सही लेकिन मिलता जरूर है!
सूर्य की तरह बनो जो दिन कोई सा भी हो, पर कभी निकलना नहीं भूलता!
मंज़िल उन्हीं को मिलती है , जिनके सपनों में जान होती है