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बस इसलिए हम कुछ नहीं कहते तुमसे, तुम समांझोगे नही और हम रो देंगे

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सहमी हुई थी झोपड़ी बारिश के खौफ से, मेहलो की आरजू थी के बारिश जरा जम के बरसे
मुझपर बहुत जिम्मेदारियां थी मेरे घर की, माफ करना मैं तेरे इश्क में मर नहीं सकता
बड़ी अजीब होती है ये यादें, कभी हसा देती है, कभी रुला देती है
इसलिए जो व्यक्ति झुक रहा है, वो पहाड़ चढ़ रहा है और जो अकड़ रहा है वो बड़ी तेजी से नीचे आ रहा है। (अल्बर्ट आइंस्टीन)
मैं अकेली हूं लेकिन फिर भी मैं हूं मैं सब कुछ नहीं कर सकती, लेकिन मैं कुछ तो कर सकती हूं और सिर्फ इसलिए कि मैं सब कुछ नहीं कर सकती मैं वह करने से पीछे नहीं हट दूंगी जो मैं कर सकती हूं।” – हेलन केलर
जहां में डूबा था मुझे वही किनारा चाहिए, तू फिर आ मेरे पास मुझे तू दोबारा चाहिए
वो सोचती होगी बड़े चैन से सो रहा हु मै, उसे क्या पता ओढ़ कर चादर रो रहा हु में
कुछ मिनट में जिंदगी नहीं बदलती, पर कुछ मिनट में सोच कर लिया हुआ फैसला पूरी जिंदगी बदल देता है इसलिए फैसलों को अहमियत
माना दूरियां कुछ बढ़ सी गई है, मगर तेरे हिस्से का वक्त हम आज भी तनहा गुजरते हैं
रखना था फासला पर तुमसे दिल लगा बैठे, फिर तुम भी ना हासिल हुए और खुद को भी गवा बैठे