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तुझे भुलाने की जिद्द थी, अब भुलाने का ख्वाब है, ना जिद्द पूरी हुई और ना

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दोस्ती ख़्वाब है और ख़्वाब की ता'बीर भी है रिश्ता-ए-इश्क़ भी है याद की ज़ंजीर भी है
हुआ तो कुछ भी नहीं, बस थोड़े से ख्वाब टूटे हैं, और थोड़े से लोग बिछड़े ह।
दोस्ती ख़्वाब है और ख़्वाब की ता’बीर भी है रिश्ता-ए-इश्क़ भी है याद की ज़ंजीर भी
बेकार में मोहब्बत से नफरत हो गयी।
कितना मुश्किल होता है उस शख्स को मनाना, जो रूठा भी ना हो और बात भी ना
चलो अब जाने भी दो क्या करोगे दास्ताँ सुनकर, ख़ामोशी तुम समझोगे नहीं और बयाँ हमसे होगा
दुश्मन से ज्यादा खतरनाक वो है, जो दोस्त बनकर धोका देते
अगर सजा दे ही चुके हो तो हाल न पूछना, हम अगर बेगुनाह निकले तो तुम्हे अफ़सोस
इंसान अपनी कमाई के हिसाब से नहीं, अपनी ज़रूरत के हिसाब से गरीब होता
बस यही दो मसले जिंदगी के हल ना हुए, ना नींद पूरी हुई ना ख्वाब मुकम्मल हुए..!!!