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जब प्यार करने वाले अपने जज़्बातों को दबाकर रिश्तों को कोई दूसरा नाम देते है
हर रक्षा बंधन मैं अपने मन के भीतर तुम्हारी सुख, समृद्धि का संकल्प लेता हूँ।
हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहाँ दम था मेरी किश्ती थी डूबी वहां
मैं ज़िन्दगी से नहीं अपने आप से नाराज़
कर्म सदैव सुख न ला सके परन्तु कर्म के बिना सुख नहीं मिलता।
कितना अजीब भ्रम है ये मानना कि सुन्दरता
दुख तो मुफ्त में मिलते है लेकिन सुख की कीमत तो देनी ही
दुख तो मुफ्त में मिलते है, लेकिन सुख की कीमत तो देनी ही पड़ती है
ज़िन्दगी में एक हसी वो होती है जो इंसान अपने ग़म को छुपाने के लिए खुद सीखता है
हम हार गए क्योंकि हमने खुद से कहा कि हम