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इससे ज्यादा इश्क का सबूत और क्या दूं साहब मैंने उसके जिस्म को नहीं उसकी रूह को चुना है

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अब बात नफरत की है तो नफरत ही सही।
निपुणता हमेशा आपके आसपास के लोगों के प्रति आपके प्रेम और परवाह का नतीजा होनी चाहिए - न कि एक मशीनी और उदासीन कार्य-भावना का।
वक़्त कट तो भी नहीं, वक़्त रुकता भी नहीं। दिल है सजदे में मगर, इश्क झुकता भी नहीं।
मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे मैं हूँ दर्द-ए-इश्क़ से जाँ-ब-लब मुझे ज़िंदगी की दुआ न दे
अब वो नफरत में बदल गयी है।
बात जो भी हो सामने बया होती है ए दोस्त इश्क़ में चालाकियाँ कहाँ होती है
प्यार में अगर किसी के लिए रोना आए तो समझ लेना प्यार सच्चा है
मैं प्यार का इस्तीफा
मैं इश्क लिखूं और उसे हो जाए काश मेरी शायरी में कोई ऐसे खो जाए
सोचता हूं आज इश्क जता दूं क्या तुमसे मोहब्बत है यह तुम्हें बता दूं क्या.