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मूल रूप में, प्रेम का अर्थ हैः पसंदों और नापसंदों से ऊपर उठ जाना।

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प्रेम की गहराई को जानने के लिए आपके कम-से-कम कुछ अंश को मिटना होगा। वरना किसी दूसरे के लिए जगह नहीं होगी ।
प्रेम एक समाहित करने की प्रक्रिया है। जब एक बार आपको मैं अपने एक अंश के रूप में शामिल कर लेता हूं, मैं आपके साथ वैसा ही होऊंगा, जैसा मैं खुद के साथ हूं। - सद्‌गुरु
तुम्हें देखा तो मोहब्बत भी समझ आई, वरना इस लफ्ज़ की तारीफ सिर्फ ही सुना करता था मैं !
भाइयों में प्रेम होगा तो लोगों को परेशानी होगी।
शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु हैं। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु हैं। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु हैं।
प्रेम की गहराई को जानने के लिए आपके कम-से-कम कुछ अंश को मिटना होगा। वरना किसी दूसरे के लिए जगह नहीं होगी।
समझ लेना तुम मुझे मेरे बिना कहे खामोशी समझना भी प्रेम ही है
तर्क से परे एक आयाम है। जब तक आप वहां नहीं आयामजाते, आप ना तो प्रेम की मधुरता, ना ही ईश्वर को जान आयाम।
मुझसे मत पूछना कि मैं तुमसे इश्क़ क्यों करता हूं, क्योंकि फिर मुझे वजह बतानी पड़ेगी अपने जीने की !
जहाँ सूर्य की किरण हो, वहीं प्रकाश होता है, और जहाँ प्रेम की भाषा हो, वहीं परिवार होता है।।