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ख़ुदा के वास्ते मौक़ा न दे शिकायत का कि दोस्ती की तरह दुश्मनी निभाया कर

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दोस्ती जब किसी से की जाए दुश्मनों की भी राय ली जाए
ये शिकायत नहीं तजुर्बा हैं ज़नाब की, क़द्र करने वालो की कोई क़द्र नहीं होती!
ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता
फ़रियाद कर रही है तरसी हुई निगाह, किसी को देखे हुए अरसा हो गया है।
जो दोस्त हैं वो माँगते हैं सुल्ह की दुआ दुश्मन ये चाहते हैं कि आपस में जंग हो
दुश्मनों ने जो दुश्मनी की है दोस्तों ने भी क्या कमी की है
मुझे दोस्त कहने वाले ज़रा दोस्ती निभा दे ये मुतालबा है हक़ का कोई इल्तिजा नहीं है
तुझे कौन जानता था मिरी दोस्ती से पहले तिरा हुस्न कुछ नहीं था मिरी शाइरी से पहले
पत्थर तो हज़ारों ने मारे थे मुझे लेकिन जो दिल पे लगा आ कर इक दोस्त ने मारा है
आज खुदा ने मुझसे कहा भुला क्यों नहीं देते उसे मैंने कहा इतनी फिक्र है तो मिला क्यों नहीं देते !